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Sunday 13 January 2013

My first poetry.

ज़िन्दगी की राह़ो में अलग मेरा रास्ता |
कहाँ चला कहाँ हु मैं, अलग इसकी दास्ताँ ||
कुछ है नहीं,  कुछ था नहीं, कुछ होगा मेरे पास कभी,
बस इसी की नुमाइंश में कट रहा है रास्ता ||

ज़िन्दगी की राहों में अलग मेरा रास्ता |
कहाँ चला कहाँ हु मैं, अलग इसकी दास्ताँ ||

सोचने का मुझमे नया नजरिया आया था|
बस उसी पर मैंने अपना रास्ता बनाया था ||
रस्ते में पत्थर - ठोकर हुई मुझे भी थी,
बस उन्ही ने रास्तो पर चलना सिखाया था||
वोह मुझे अलग मान मुझ पर हँस रहे थे,
मैं उन्हें एक मान उन पर मुस्कुरा रहा था ||

ज़िन्दगी -- -- - - - - - - - - - - -  - -  रास्ता |
कहाँ चला - - - - - - -  -- - - - - - - - दास्ताँ ||

"रुके न तू झुके ना तू " इसी ने होंसला दिया |
इसी के सहारे मैंने मुकाम को पा लिया ||
ज़िन्दगी जीने का मुझ पर नया रंग छा गया |
मेरा एक अलग रास्ता मेरी ज़िन्दगी बना गया ||

ज़िन्दगी की राह़ो में अलग मेरा रास्ता |
कहाँ चला कहाँ हु मैं, अलग इसकी दास्ताँ ||

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