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Thursday, 10 January 2013

तब पागलपन चाहत के साथ मिलता है |


परवान चढ़ती है मोहब्बत
पागलपन चाहत के साथ मिलता हैं |
जब मिलते-मिलने से
जाने का मन नहीं करता है |
जब खुशियाँ 'साथ' होने की
आंसूं बन दिख जाती है |
जब दिल को अच्छा लगता है
कोई अपना-सा लगता है |
जब जाते मंदिर-मस्जिद से
इबादत उसके लिए भी आती है |
जब नौं-नौं दिन भूखी रहकर
वो तुम्हारी तरक्की की दुआं करती जाती है |
परवान चढ़ती है मोहब्बत
पागलपन चाहत के साथ मिलता हैं  |  |

जब आशिकी के खातिर
तू अपनों से लड़ मरता है|
जब उसके नाज़ - नखरे के सिवा
और कुछ नहीं जमता है |
जब साथ उसके होने पर
घड़िया रुकने की दुआएं करता है |
जब उसको डर लगता है
तू उसका हाथ पकड़ता है |
तब
परवान  चढ़ती है मोहब्बत
पागलपन चाहत के साथ मिलता है |
तू उसके साथ जीने -मरने की
हर पल दुआएं करता है ||

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