पुरानी अलमारी में
मिट्टी की गुल्लक मिली है ,
उसमे कुछ सिक्के मिले है
वही जो जोड़े थे
सालभर-वाले मेले के खातिर
रोज़-रोज़, पाई -पाई
जिसमे पापा के कन्धो पे मैं
झाग के बुलबुले उड़ाता हुआ
जादू देखने जाता था ,
मुछे-दाढ़ी ,चश्मा, मोटर
तलवार, खरीद के लाता था,
बहुत यादें है उस जमीन की
जो आजकल खाली खोख लेकर
तरस रही है, बंजर पड़ी है,
उसके बुढ़ापे में उसको मिलने
सिर्फ कचरे का ढेर और मलबा आता है ...,
उसके करीब ही था वो
नीम का घना पेड़
जो मदारी का खेल का
बुजर्गो की राजनीतिज्ञ के मेल का
बच्चो की रेल का
पाखंडा हुआ करता था
आज बेजान , लावारिस, सूखे का मुखबिर है ,
उससे भी कोई मिलने नहीं आता आजकल ..,
करीब ही ..,
मेरा आंगन भी था
जिसने 'पहला' कदम चलना सिखाया था
चीरते हुए METRO निकलती है उसको आजकल
इस गुल्लक जैसे आवाज करती हुई
किसी ने सही कहा है
पैसा बोलता है
क्या- क्या कह गया आज
ये पुराने सिक्के, गुल्लक के ।। :)
मिट्टी की गुल्लक मिली है ,
उसमे कुछ सिक्के मिले है
वही जो जोड़े थे
सालभर-वाले मेले के खातिर
रोज़-रोज़, पाई -पाई
जिसमे पापा के कन्धो पे मैं
झाग के बुलबुले उड़ाता हुआ
जादू देखने जाता था ,
मुछे-दाढ़ी ,चश्मा, मोटर
तलवार, खरीद के लाता था,
बहुत यादें है उस जमीन की
जो आजकल खाली खोख लेकर
तरस रही है, बंजर पड़ी है,
उसके बुढ़ापे में उसको मिलने
सिर्फ कचरे का ढेर और मलबा आता है ...,
उसके करीब ही था वो
नीम का घना पेड़
जो मदारी का खेल का
बुजर्गो की राजनीतिज्ञ के मेल का
बच्चो की रेल का
पाखंडा हुआ करता था
आज बेजान , लावारिस, सूखे का मुखबिर है ,
उससे भी कोई मिलने नहीं आता आजकल ..,
करीब ही ..,
मेरा आंगन भी था
जिसने 'पहला' कदम चलना सिखाया था
चीरते हुए METRO निकलती है उसको आजकल
इस गुल्लक जैसे आवाज करती हुई
किसी ने सही कहा है
पैसा बोलता है
क्या- क्या कह गया आज
ये पुराने सिक्के, गुल्लक के ।। :)
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