सुनो
उस पार चलते है
जहाँ लहरें छलांग लगाकर
तुमको छूने को बेक़रार है,
आसमां में इतनी बारीक जरी का काम है
जैसे दिवाली की रात प्लेन से कोई शहर देख लिया हो,
चाँद झील के सहारे उतरकर
बाजू आकर बैठ गया है,
और हवाएं दाँतों में कंघी फंसा
बेपरवाह दौड़ रही हैै
उस पार
जहाँ चाँद मजहबी नहीं है
न है कोई क़ानून की बेढीयां
जहाँ इश्क
सिर्फ इश्क है
कोई जिहाद
बेवकूफी
या जबरदस्ती नहीं।
सुनो
उस पार चलते है :)
उस पार चलते है
जहाँ लहरें छलांग लगाकर
तुमको छूने को बेक़रार है,
आसमां में इतनी बारीक जरी का काम है
जैसे दिवाली की रात प्लेन से कोई शहर देख लिया हो,
चाँद झील के सहारे उतरकर
बाजू आकर बैठ गया है,
और हवाएं दाँतों में कंघी फंसा
बेपरवाह दौड़ रही हैै
उस पार
जहाँ चाँद मजहबी नहीं है
न है कोई क़ानून की बेढीयां
जहाँ इश्क
सिर्फ इश्क है
कोई जिहाद
बेवकूफी
या जबरदस्ती नहीं।
सुनो
उस पार चलते है :)
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