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Wednesday, 11 February 2015

सुनो

सुनो
उन लम्हों के जखीरे में से
कुछ लम्हे रखलो तुम
कुछ देदो मुझे
फिर हम खेलेंगे 'आइस-पाइस'
पुराने ख्वाबों के 'पाले' में
जहाँ मैं-तुम(हम) अक्सर मिल जाते थे
तुम छुपके से आकर
मुझे 'थप्पी' कर देना
और मैं
हो जाऊंगा तुम्हारा गुलाम
ताउम्र 'दाइम' देने के लिए

तीन.. दो.. एक..

सुनो
तुम आओगी न? :)

बाकी है |

रस्म बाकी है, रिवाज़ बाकी है
दिल टूटने की, आवाज़ अभी बाकी है

खलिश बाकी है, चुभन बाकी है
दिल पे घाव है, पूरा बदन अभी बाकी है

इश्क कुछ बाकी है, सफ़र कुछ बाकी है
टूट के खड़े है, बिखरना अभी बाकी हैै

कुछ क़र्ज़ पुराना बाकी है, हिसाब चुकाना बाकी है
दिए जख्मों को, मिटाना अभी बाकी है

रोते हुए दिल को हँसाना अभी बाकी है,
मधुशाला में रातभर, जाम चढ़ाना बाकी है

दर्द भरा है अंत गर, तो कहानी अभी बाकी है
बाग़ में भंवर की, जवानी अभी बाकी है| :)

सुनो उस पार चलते है

सुनो
उस पार चलते है

जहाँ लहरें छलांग लगाकर
तुमको छूने को बेक़रार है,
आसमां में इतनी बारीक जरी का काम है
जैसे दिवाली की रात प्लेन से कोई शहर देख लिया हो,
चाँद झील के सहारे उतरकर
बाजू आकर बैठ गया है,
और हवाएं दाँतों में कंघी फंसा
बेपरवाह दौड़ रही हैै

उस पार
जहाँ चाँद मजहबी नहीं है
न है कोई क़ानून की बेढीयां
जहाँ इश्क
सिर्फ इश्क है
कोई जिहाद
बेवकूफी
या जबरदस्ती नहीं।

सुनो
उस पार चलते है :)

नज़्म मेरी

परेशान सी क्यूँ है
यूँ हैरान सी क्यूँ है
नज़्म मेरी , मान भी जा
तू नाराज़ सी क्यूँ है। :)

सुना है

सुना है
एक पंछी
अगर पिंजरे में
कुछ साल के लिए कैद हो
तो आजाद होने की चाह
और उड़ने की क्षमता
पिंजरे में ही दम तोड़ देती है
जैसे तुझे मुक्कमल करने का ख्वाब
अब चरमरा कर
टूट चूका है
कभी तेरी कमसिन मुस्कान
कुछ जान फूक भी दे
तो उम्रदराज इश्क
दम तोड़ देता है

सुना तो ये भी है की
किसी चीज़ को गर
शिद्दत से चाहो
तो पूरी कायनात
लग जाती है
उसको तुमसे मिलाने में
मैंने तेरी यादों को
शिद्दत से मिटाना चाहा
मेरी पूरी कायनात ही
मिट गई
अजीब न-इंसाफी है| :)

रुको जरा बात करते है

रुको जरा 
बात करते है
वही
कल जो अधूरी रह गई थी
परसों भी तो कह रहा था
हाँ वही
महीने भर पुरानी
कुछ महीने
या साल
या शायद
जबसे तुम मिली हो ...

यार
अब ऐसे देखोगी तो मैं फिर ....
कुछ नहीं
चलो, देखो कितनी देर हो गई। :)

हंगामा क्यूँ है

इतनी सी है बात, हंगामा क्यूँ है
आजकल फितरतो में, इतना ड्रामा क्यूँ है
उस शहर की मौतें बिखर कर भी खबर नही हैं
इस शहर तपन क्या बड़ी, इतना दिखावा क्यूँ है। 

इश्क :)

इश्क 
तारों की बिन्दू से उसके अक्स को जोड़ना है
इश्क
धरती के गरम सीने पे बारिश का होना है
इश्क
काजल के दायरे में उसकी कायनात सी आँखें है
इश्क
दूर तेरे जाने पे माँ का चुपके से रोना है
इश्क
बेजड की रोटी के साथ सरसों का साग है
इश्क
काली पड़ी अर्ध-रात में चाँद-चांदनी का साथ है
इश्क
दौड़ती हुई ज़िन्दगी में एक संभला हुआ पड़ाव है

इश्क का अंत इश्क से हो जरुरी नहीं है।
इश्क जिंदगी का एक पड़ाव है, जहाँ हज़ारों इश्क है। :)

कुछ यार होते तो अच्छा था

दो-चार होते तो अच्छा था
कुछ यार होते तो अच्छा था

इस शहर में सारी रात भर
एक वो तारा है
एक मैं हूँ
वो 'चमकते' हुए भी अकेला है
फिर मैं किस जंगल का शेर हूँ

इस आधे-अधूरे ख्वाब में
कुछ नींद होती तो अच्छा था
तेरी याद होती तो अच्छा था
तू साथ होती तो अच्छा था। :)

तकदीर का इम्तेहान

उस बरसाती बूँद की तरह
तेरा एक छोर उस पत्ते से बंधा है
और एक छोर तड़प रहा है
मेरी हथेली में आकर सिमटने के लिए।।
आज इन लकीरों की
तकदीर का इम्तेहान है। :)