इक जरा सी बात मान लो न
इन कजरारी आँखों से
काजल का एक टिका निकालकर
अपने कानो के पीछे भी
हल्का सा लगा लो न
इक जरा सी बात मान लो न
ये जो तेरी मुस्कान का
तिलिस्मी जाल बिछाया हुआ है,
मेरी रूह पे भी इसका आज
कब्जा सा जमा लो न
इक जरा सी बात मान लो न
ये जो शिकन सलवटे है माथे पर
अश्क इन गोरे गालो पर
जो भी बात अनकही दिल में है
सब मुझसे कह डालो न
इक जरा सी बात मान लो न |
इन कजरारी आँखों से
काजल का एक टिका निकालकर
अपने कानो के पीछे भी
हल्का सा लगा लो न
इक जरा सी बात मान लो न
ये जो तेरी मुस्कान का
तिलिस्मी जाल बिछाया हुआ है,
मेरी रूह पे भी इसका आज
कब्जा सा जमा लो न
इक जरा सी बात मान लो न
ये जो शिकन सलवटे है माथे पर
अश्क इन गोरे गालो पर
जो भी बात अनकही दिल में है
सब मुझसे कह डालो न
इक जरा सी बात मान लो न |
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