Tapish Khandelwal
A poetic enthusiastic, who tryst with words and laid down his odyssey.
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Wednesday, 17 July 2013
उधार में
उधार में मुट्ठी भर पुराने पल दे सकती हो क्या ?
ब्याज में पूरी ज़िन्दगी रख लेना
वरना, एक जाम मुस्कान ही पिला दो
रख सको तो बदले में, हमें ही रख लेना ।
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