Pages

Thursday 25 July 2013

लड़का धार्मिक हो गया है आजकल ।

अब्र के जिल्द से निकलकर
अलसाई सुबह 
सूरज जैसे ही मेरी खिड़की तलक
पहुँचता है
मैं शताब्दी की रफ़्तार से तैयार होकर
मंदिर तलक पहुँच जाता हूँ
मेरी इबादत
सलवार-दुपट्टे में आती है वहां
नज़रे मिलते ही
दुपट्टा सम्भाले
मुहं फुलाए
जुल्फे सरकाए
ग़ुस्से में जो देखती है
मैं बंद आँखों पर तबस्सुम लाकर
उस पत्थर वाली मूर्ति को
उसकी दुआ मुक्कमल होने की
फरियाद लगा देता हूँ

चर्चे ये हो रहे हैं
लड़का धार्मिक हो गया है आजकल ।

अब्र = बादल ; जिल्द = cover ;
तबस्सुम = smile

No comments:

Post a Comment