नहीं
मैं इन्कलाब की कविता नहीं करता उसमे आज़ादी होती है जो हमेशा अधूरी होती है एक दौड़ ख़त्म नहीं हुई की दूसरी दौड़ शुरू या फिर इन कपड़ो जैसी होती है वो जब तक नए है हमें कद्र है उसके बाद पुराने दफ़न और नए के लिए हवन नहीं मैं इश्क पे भी कविता नहीं करता उसमें वफ़ा और जफा होती है जब तक वफ़ा चलती है आदमी बे-वफाई होने से डरता है और जब जफा होती है तो आदमी टूट के बिखर पड़ता है या गर ब-मुश्किल इश्क मुक्कमल होता भी है तो उतने से कविता की रोजी-रोटी नही चलती नहीं मैं खुदा पे भी कविता नहीं करता क्यूंकि जब भी मैं उसके नसीम और वजूद की एक वजह गिनाता हूँ कलयुग उसके ना होने की दस वजह दिखा देता है मैं आज की कविता करता हूँ जिसका ना कोई कल था ना ही कोई कल होगा जो इतनी नशे में है की न चाहते हुए भी सच बोल देती है जिसको पढो , देखो या जला दो बेफिक्र है क्यूंकि वो सच के नशे में है आज के मजे में है । जफा : injustice, to screw or ditch; नसीम : Helping. |
Friday 22 November 2013
नहीं मै कविता नहीं करता |
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