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Sunday 24 February 2013

My poetry Dedicated to my Father!

इक पौधा, ज़रा बढ़ा था मैं ,
खुदके साये से जब डरा था मैं,
वो' "क्योँ -क्योँ " करते सवालों को
पिचकारी से भरकर चलता था मैं,
तुम पास मेरे - हो साथ मेरे
आपके कंधो पे ही तो पला था मैं ,
क्या दर्द, क्या मुश्किल, क्या कठनाईयां
सिर्फ किताबो में ही पढ़ा इन्हें ,
तपिश धुप की या बारिश बरसाती
हरपल साथ आपका साया ,
ऊँगली-हाथ पकड़कर
कठिन डगर पर चलना सिखाया ,
किस्मत ही तो है ये मेरी
जो हर पल साथ है आपकी पितृ छाया ! :)

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