चुप होटों पे आकर
कतरा कतरा दिखने वाली मुस्कान हो तुम Baga beach की रेत पे दिल बनाकर जो लिखा वो नाम हो तुम सचिन की विदाई हो हो ग़ज़ल प्यासी जगजीत की किताबो में दबे इश्क के सूखे फूल के निशां हो तुम नज़ीर हो मोहब्बत की हर इबादत की मांग हो तुम मेरी भटकी हुई जवानी में एक संभला हुआ मुकाम हो तुम। :) |
Friday, 22 November 2013
एक संभला हुआ मुकाम हो तुम।
ईद मुबारक
"मैं 'अपने चाँद' पे टकटकी लगाए हुए हूँ
वो मुझे आवारा कह रहे हैं तेरे मोहल्ले में सभी बदतमीज़ ही लगते है ।" |
तेरा मेरा दफ़न हुआ ख्वाब |
लिखकर कहीं भूल गया
तेरा मेरा दफ़न हुआ ख्वाब सोचता हूँ ढून्ढ कर जला दूँ कभी अचानक मिल गया तो आज भी कायनात ढाल सकता है और जला सकता है मेरी दिल से रूह तक सबकुछ सिर्फ एक अधुरा ख्वाब । :) |
नहीं मै कविता नहीं करता |
नहीं
मैं इन्कलाब की कविता नहीं करता उसमे आज़ादी होती है जो हमेशा अधूरी होती है एक दौड़ ख़त्म नहीं हुई की दूसरी दौड़ शुरू या फिर इन कपड़ो जैसी होती है वो जब तक नए है हमें कद्र है उसके बाद पुराने दफ़न और नए के लिए हवन नहीं मैं इश्क पे भी कविता नहीं करता उसमें वफ़ा और जफा होती है जब तक वफ़ा चलती है आदमी बे-वफाई होने से डरता है और जब जफा होती है तो आदमी टूट के बिखर पड़ता है या गर ब-मुश्किल इश्क मुक्कमल होता भी है तो उतने से कविता की रोजी-रोटी नही चलती नहीं मैं खुदा पे भी कविता नहीं करता क्यूंकि जब भी मैं उसके नसीम और वजूद की एक वजह गिनाता हूँ कलयुग उसके ना होने की दस वजह दिखा देता है मैं आज की कविता करता हूँ जिसका ना कोई कल था ना ही कोई कल होगा जो इतनी नशे में है की न चाहते हुए भी सच बोल देती है जिसको पढो , देखो या जला दो बेफिक्र है क्यूंकि वो सच के नशे में है आज के मजे में है । जफा : injustice, to screw or ditch; नसीम : Helping. |
उधार में जरा सा इश्क |
"उधार में जरा सा इश्क
अपनी बाँहों में लपेट कर देदे ..,
दिवालिया खुदको कर
मैं तेरा हो जाऊंगा "।
अपनी बाँहों में लपेट कर देदे ..,
दिवालिया खुदको कर
मैं तेरा हो जाऊंगा "।
तेरे हाथो की लकीरे |
तेरे हाथो की लकीरे
मेरे हाथो की लकीरों से
हूबहू मिलती है
कौन कहता है खुदा आजकल
रिश्ते नहीं बनाता
हाथ थाम मेरा
इन लकीरों को पनाह दे
कौन कहता है किस्मत को
यूँ कैद किया नहीं जाता। :)
मेरे हाथो की लकीरों से
हूबहू मिलती है
कौन कहता है खुदा आजकल
रिश्ते नहीं बनाता
हाथ थाम मेरा
इन लकीरों को पनाह दे
कौन कहता है किस्मत को
यूँ कैद किया नहीं जाता। :)
मेरा इश्क |
मेरा इश्क
मेरे शहर की सड़क जैसा है
हर थोड़े माह में मरहम हो जाता है
कुछ नए, बड़े घाव लगाने के लिए |
मेरे शहर की सड़क जैसा है
हर थोड़े माह में मरहम हो जाता है
कुछ नए, बड़े घाव लगाने के लिए |
दिवाली :)
वो जो सज-धज के निकली
चाँद ऐसा शरमाया
अच्छी भली रात
अमाव्यस्या हो गई
उसके नूर की चांदनी
फिर कुछ ऐसी फैली
जहां मे उस रात
दिवाली हो गई ।
चाँद ऐसा शरमाया
अच्छी भली रात
अमाव्यस्या हो गई
उसके नूर की चांदनी
फिर कुछ ऐसी फैली
जहां मे उस रात
दिवाली हो गई ।
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