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Tuesday, 5 March 2013

इंसानों की नगरी मिले तो

ग़ालिब की नज्में , कुरान की कसमें
सहूलियत की सीडी पर चढ़कर
यहाँ रोज रंग बदलती है..,

नशा-दौलत-मुकाम के खातिर
इंसानियत वाले मजहब की अर्थी
गली-गली निकलती है..,

इंसानों की नगरी मिले तो
कभी हमे भी सैर करना जनाब
यहाँ इश्क ,मोहब्बत की बंदरबाट में
सिर्फ शीला,मुन्नी ही चलती है ।